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Wednesday, June 01, 2011

सरकार और सरकारी स्कूल

सरकार द्वारा चलाए जा रहे सर्व शिक्षा अभियान पर सरकार करोड़ो रूपया खर्च कर रही है, और हर साल यही उम्मीद जताती है कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। इस बजट में स्कूली षिक्षा के लिए 28,799 करोड़ रूपये मिले हैं। अगर सरकारी स्कूलों की स्थिति का मूल्यांकन किया जाए तो सारे तथ्य चौंकाने वाले ही नजर आएंगे। गांव तो क्या कस्बे और छोटे शहरों में चलने वाली सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या दिनो-दिन घटती जा रही है। इसका प्रमुख कारण सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की कमी है। दूसरा कारण षिक्षा का स्तर ज्यादातर स्कूलों का दयनीय है। अभिभावक में जागरूकता का अभाव है, और कई राजस्थान में तो स्टाफ की कमी के चलते छात्रों व अभिभावको द्वारा स्कूलों पर ताला जड़ दिया गया है। योजना बनाने वाले योजना बनाकर इतिश्री कर लेते हैं, इसके बाद सारी की सारी कार्यवाही केवल पत्रों के आदान प्रदान में सिमटकर रह जाती है। सरकारी स्कूलों में स्टाफ की कमी के चलते जहां छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ता है, वहीं स्कूल में प्रधानाध्यापक से लेकर चपरासी तक का कार्य एक या दो अध्यापकों द्वारा ही किया जाता है। मतदान, मतगणना, सर्वे, जनगणना आदि कार्य भी करने पड़ते हैं, ऐसे में क्या वे अध्यापक निजी स्कूलों जैसा परिणाम दे पाएंगे ?
सरकारी विभागों में दरी-पट्टी आदि की खरीद खादी भण्डार द्वारा करने की अनिवार्यता है, सरकारी कर्मचारियों की मुख्यालय पर रहने की अनिवार्यता है, तो फिर सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों के लिए सरकारी स्कूल की अनिवार्यता क्यों नहीं हो सकती ? आखिर योजना बनाने वाले, उनको क्रियान्वित करने वाले और उनकी निगरानी करने वालों को भी तो पता चले कि सरकारी स्कूलें सिर्फ और सिर्फ गरीब लोगों के लिए रबड़ की गोली नहीं है। इस गोली का स्वाद इन सबको भी मिलना चाहिए।

1 comment:

RAJKUMAR KARNANI said...

bilkul beja farmaya lekhak ne me sahmat hu